प्रशासकीय भ्रष्टाचार (Administrative Curruption)
- प्रशासकीय भ्रष्टाचार (Administrative Curruption) क्या है?
- भारतीय प्रशासन में भ्रष्टाचार के कारण
- भ्रष्टाचार को दूर करने के उपाय
- सरकार द्वारा भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए गए उपाय
प्रशासकीय भ्रष्टाचार (Administrative Curruption) क्या है?
प्रशासकीय भ्रष्टाचार समाज को घुण की तरह खा रहा है। प्रशासकीय भ्रष्टाचार से अभिप्राय: उस भ्रष्टाचार से है जो शासकीय कर्मचारी अपनी सत्ता व प्रभाव के अनुचित प्रयोग द्वारा निजी लाभ के लिए करता है।
यह जानकारी भी महत्वपूर्ण है:-
यह शक्ति और प्रभाव किसी भी व्यक्ति को उस के पद के कारण प्राप्त होते हैं। समाज विज्ञान के विश्व ज्ञान कोष के अनुसार “राजनैतिक शक्ति को निजी लाभ के लिए प्रयोग करने को राजनैतिक प्रचार कहते हैं।” सार्वजनिक धन का दुरुपयोग भ्रष्टाचार कहलाता है। भ्रष्ट व्यक्ति को संरक्षण देने वाला अधिकारी भी भ्रष्टाचार करने वाले के समान है। भारत एक लोकतन्त्रात्मक गणराज्य है। यहां हर पांच वर्ष में चुनाव होते हैं। चुनावों में धन और बल के प्रयोग से चुनाव जीतने के कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। भ्रष्टाचार की परिभाषा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 161में दी गई है।
भारतीय प्रशासन में भ्रष्टाचार के कारण
1. दूसरे विश्व युद्ध के बाद भ्रष्टाचार अधिक फैला। लोगों को बुनियादी जरूरतों को पूरा करना कठिन हो गया। वस्तुओं का अभाव होने लगा। राशन की कमी और इन्सपैक्टर का राज शुरू हो गया। स्टोरों पर जो आवश्यक वस्तुएं मिलने लगी वहां सरकारी नियन्त्रण था। भ्रष्टाचार ने व्यवस्था को और भ्रष्ट कर दिया।
2. राजनैतिक दबाबः
अधिकारथिों को मन्त्रियों के दबाव में गलत कार्य करने पड़ते हैं। ऐसा करने में वे अपनी सेवा, स्थानांतरण आदि को सुरक्षित समझते हैं।
3. बेरोजगारी:
बेरोजपारी के कारण जब पढ़े लिखे नौजवान को नौकरी नहीं मिलती तो नौजवान हताश हो जाता है और निराश हो कर भ्रष्टाचार अपनाने पर मजबूर होता है।
4. योग्य अधिकारियों की कमी :
स्वतन्त्रता के पश्चात् सार्वजनिक क्षेत्र का बहुत अधिक विस्तार हुआ। सिफारिश के कारण कई अयोग्य व्यक्तियों को नौकारी मिल गई। कइयों को पदोन्नति मिली। नालायक कर्मचारियों की प्रतिबद्धता सेवा के प्रति नहीं होती उन की बफादारी उन राजनेताओं के प्रति होती है जिन के प्रयासें से उसे नौकरी मिली है। वही राजनेता दबाव बना कर भ्रष्टाचार करवाते हैं।
5. महंगाई :
वेतन के अनुपात में वस्तुओं की कीमत में इतनी वृद्धि हो गई कि कर्मचारी अपनी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हो गए और उन्होंने भ्रष्टाचार का सहारा ले लिया। कर्मचारियों के न्यूनतम और अधिकतम आय में बहुत अधिक अन्तर है। जब कम आय वाला व्यक्ति अधिक आय वाले के स्तर को देखता है तो यह लालसा भी उसे अधिक धन कमाने की ओर प्रेरित करती है।
6. नैतिक मूल्यों की कमी :
नैतिक मूल्यों के ह्रास से भी भ्रष्टाचार फैलता है। जब सरकारी गाड़ियां निजी प्रयोग के लिए जाती हैं, सड़क के मजदूर घर पर काम करते हैं, निजी ट्रक अधिकारी के घर ईंट और पत्थर मुफ्त में ढोते हैं, काला धन विदेशों में जमा करवाया जाता है, तो ऐसे में हम किसी अधिकारी से ईमानदारी को क्या अपेक्षा रख सकते हैं।
7. तीव्र जनमत का अभाव :
साधारण जनता भ्रष्टाचार से अत्यंत दुःखी है। परन्तु वे अपने आप तक ही सीमित रहते हैं। वे लोग बातें तो करते हैं परन्तु उन्हें अपनी रोजी रोटी से ही फुरसत नहीं मिलती। इस का एक प्रमाण कुछ वर्ष पूर्व देखने को मिला जब अन्ना हजारे ने लोकपाल के मुद्दे को लेकर अनशन किया। जनमत बना और बात निर्णायक स्थिति की ओर बढ़ी। तीव्र जनमत सारे देश में देखने को मिला। जनमत के अभाव से भ्रष्टाचार को बेल फलती फूलती है।
8. एक ही दल का लम्बे समय तक शासन :
लम्बे समय तक एक ही दल के शासन से भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को सत्ता के दुरूपयोग का अवसर मिल जाता है। राजनैतिक संरक्षण में पलने वाले अधिकारियों को सुरक्षा मिल जाती है।
9. व्यापारी वर्ग द्वारा भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन :
व्यापारी वर्ग जब कर चोरी करता है, तस्करी करता है या अन्य कोई हेरा फेरी करता है तो धन बल पर उसे भी राजनैतिक संरक्षण मिल जाता है। इस से भी भ्रष्टाचार फैलता है।
10.पदाधिकारियों का ऐश्वर्यमयी जीवन :
भ्रष्ट अधिकारी ऐश्वर्यमयी जीवन जीते हैं। व्यापारी वर्ग उनके ऐश्वर्य का प्रबंध किसी बड़े होटल में शराब और अन्य तरीकों से करते हैं। यही धन लिप्सा उन को भ्रष्ट बनाती है।
भ्रष्टाचार को दूर करने उपाय:
1. अच्छी शिक्षा :
अच्छी शिक्षा व्यक्ति के अन्दर सूझ बूझ का विकास करती है। जो लोग अपने अधिकारों व कर्तव्यों की प्रति जागरूक होते हैं। वे उन महापुरुषों की जीवनियों का अध्ययन कर सकते हैं जो इस देश के आदर्श रहे।
2. योग्यता के आधार पर भर्तीः
लोक सेवकों की भर्ती का मापदण्ड योग्यता होनी चाहिए। सिफारिश के आधार पर नौकरी प्राप्त करने वालों से हम काम की अपेक्षा नहीं रख सकते।
3. कर्मचारियों के वेतन में वृद्धिः
कर्मचारियों को योग्यता के अनुरूप पर्याप्त वेतन मिलना चाहिए ताकि इन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।
4. पारदर्शिताः
प्रशासकीय प्रणाली सरल होनी चाहिए। प्रायः देखा गया है कि दफ्तरों में कागज़ फाइलों में ही गुम हो जाते हैं। काम लालफीता शाही में बन्द रहता है। कार्य में कोई भी पारदर्शिता नहीं होती है।
5. ठोस जनमत:
अन्ना हजारे की तरह ईमानदार आदमी ठोस जनमत तैयार कर सकते हैं। ठोस जनमत के आगे भ्रष्ट सरकार को घुटने टेकने पड़ते हैं।
6. प्रशिक्षण :
कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए इस से उन की कार्य में दक्षता भी बढ़ेगी। काम को ईमानदारी से करने का प्रशिक्षण भ्रष्टाचार के विरूद्ध जनमत तैयार करने में सहायक होता है।
7. कठोर दण्डः
भ्रष्टाचार करने वाले को कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए। साथ ही भ्रष्ट तरीके से अर्जित सम्पति को जब्त करने का प्रावधान कानून में किया जाना चाहिए।
सरकार द्वारा किए गए उपाय :
1. भारतीय दण्ड संहिता में भ्रष्टाचार एक जुर्म है जिसके लिए दण्ड दिया जा सकता है।
2. भ्रष्टाचार के आरापों की जांच के लिए सरकार जांच आयोग नियुक्त कर सकती है।
3. सरकार द्वारा केन्द्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना।
4. भ्रष्ट व्यक्ति की अनिवार्य सेवा निवृति।
5. विशेष पुलिस संगठन की स्थापना 1941 में की गई।
6. 1963 में केन्द्रीय जांच ब्यूरो की स्थापना।
7. लोकपाल व लोकायुक्त नियुक्त करने का कार्य।
8. 1964 में केन्द्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना की।