राज्यपाल: शक्तियाँ एवं कार्य | Governor in Hindi

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राज्यपाल: शक्तियाँ एवं कार्य | Governor in Hindi

प्रिय, पाठकों आज के इस पोस्ट में हमने राज्यपाल(Governor) के बारे में जानकारी  दी है। राज्यपाल(Governor) भारतीय लोक प्रशासन का एक महत्वपूर्ण अंग है।

यहाँ राज्यपाल(Governor) के बारे में जो जानकारी दी गई है वह इस प्रकार से है :-

  • राज्यपाल कौन होता है
  • राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है
  • राज्यपाल बनने के लिए क्या योग्यताएं होनी चहिए?
  • राज्यपाल का कार्यकाल कितना होता है?
  • राज्यपाल के वेतन और भत्ते कितने होते हैं?
  • राज्यपाल की शक्ति एवं कार्य

 

राज्यपाल: शक्तियाँ एवं कार्य | Governor in Hindi

राज्यपाल (Governor) कौन होता है?

भारत एक संघीय गणराज्य है। वर्तमान में भारत में 28 राज्य, 7 केन्द्रशासित प्रदेश और एक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Territory) है। प्रत्येक राज्य में अलग-अलग सरकारें हैं। इन राज्य सरकारों का संगठन बहुत कुछ संघीय अथवा केन्द्रीय सरकार से मिलता जुलता है। राज्य का शासन राज्यपाल के नाम पर चलता है ठीक उसी तरह जैसे संघीय सरकार का शासन राष्ट्रपति के नाम पर । राज्यपाल की नियुक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से 160 तक वर्णित की गई है।

नियुक्ति :- 

राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 155 द्वारा की जाती है। वास्तव में राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह से यह नियुक्ति करता है।

योग्यताएं :-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  1.  उस को आयु 35 वर्ष से कम न हो।
  1. वह किसी राज्य के विधानमण्डल अथवा संसद का सदस्य न हो। यदि हो तो राज्यपाल का कार्यभार संभालने पर वह स्थान उसे छोड़ना पड़ता है।
  1. राज्यपाल बनने के बाद वह किसी लाभदायक पद पर नहीं रह सकता है।
  1. वह किसी न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित न किया गया हो।

कार्यकाल :-

राज्यपाल का कार्यकाल सामान्यतया 5 वर्ष का होता है। संविधान के अनुच्छेद 156 (1) के अनुसार “राज्यपाल ” राष्ट्रपति की इच्छापर्यन्त अपने पद पर रहेगा। राष्ट्रपति 5 वर्ष से पूर्व भी किसी राज्यपाल को हटा सकता है। राज्यपाल चाहे तो स्वयं भी त्यागपत्र दे सकता है।

 

वेतन व भत्ते :-

2008 के बाद राज्य पाल का वेतन 75000 रू० प्रतिमाह है। इस के अतिरिक्त उसे निःशुल्क सरकारी निवास व कुछ अन्यभत्ते भी मिलते हैं।

 

न्यायिक सुविधाएं :-

  1.  राज्यपाल अपनी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होना पड़ता।
  2.  उस के कार्यकाल के दौरान उस पर कोई फौजदारी मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता।
  3. कार्यकाल के दौरान कोई भी न्यायालय उसे नजरबन्द करने के आदेश नहीं दे सकता।
  4. यदि किसी ने राज्यपाल के विरूद्ध दीवानी मुकद्दमा चलाना हो तो 2 महीने पहले नोटिस देना जरूरी है।

स्थानांतरण :- 

राष्ट्रपति जब चाहे राज्यपाल का स्थानांतरण किसी भी प्रदेश में कर सकता है।

शपथ :- 

राज्यपाल को पद संभालने से पहले पद व गोपनीयता की शपथ लेनी पड़ती है। यह शपथ उसे राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठ न्यायाधीश के सम्मुख लेनी पड़ती है।

राज्यपाल की शक्तियां तथा कार्य

क) कार्यपालिका शक्तियां :- 

संविधान के अनुच्छेद 154 के अनुसार राज्यपाल को निम्नलिखित कार्यपालिका शक्तियां प्राप्त हैं:
1. प्रदेश अथवा राज्य का समस्त शासन राज्यपाल के नाम से चलाया जाता है।
2. प्रदेश में बहुमत प्राप्त विधायक को वह मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है। तथा मुख्यमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।
3. मुख्यमन्त्री की सलाह से वह किसी भी मन्त्री को हटा सकता है।
4. राज्य में बड़े पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है जैसे महाधिवक्ता, लोक सेवा आयोग के सभापति आदि।
5. राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में राज्यपाल से सलाह लेते हैं।
6. राज्यापाल प्रशासन के सम्बंध में मुख्यमन्त्री से कोई भी जानकारी ले सकता है।
7. राज्यापाल मन्त्री के किसी निर्णय को मन्त्रिपरिषद के पास विचारार्थ भेज सकता है।
8. यदि राज्यपाल यह अनुभव करे कि प्रदेश सरकार लोकतन्त्रात्मक परम्पराओं के अनुसार चल नहीं सकती है तो वह राष्ट्रपति को अवगत कराता है और राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा पर वह राष्ट्रपति के आदेश से राज्य का शासन चलाता है।
 

ख) विधायिनी शक्तियां :-

1. प्रत्येक वर्ष विधान मण्डल का अधिवेशन राज्यपाल के अभिभाषण से आरम्भ होता है जिसमें राज्य की नीति का वर्णन होता है।
2 राज्यपाल विधानमण्डल का अधिवेशन बुला सकता है, स्थगित कर सकता है अथवा उस की अवधि बढ़ा सकता है।
3. मुख्यमन्त्री की सलाह से वह विधान सभा को भंग कर सकता है।
4. वह विधानमण्डल के दोनों सदनों में भाषण दे सकता है तथा उन को सन्देश भेज सकता है।
5. कोई भी बिल राज्यपाल की स्वीकृति के बिना कानून नहीं बन सकता। धन-बिल के अलावा साधारण बिलों को पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है।
6. कुछ बिलों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रख सकता है।
7. जब विधान मण्डल का अधिवेशन न चल रहा हो तो राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है। परन्तु 6 सप्ताह के भीतर विधान मण्डल द्वारा इस की स्वीकृति आवश्यक है, अन्यथा यह रद्द समझा जाएगा।
8. राज्यपाल विधान मण्डल के सभापति तथा उपसभापति के पद रिक्त हो जाने पर किसी भी सदस्य को अध्यक्षता के लिए कह सकता है।
 

ग) वित्तीय शक्तियां :-

1. किसी भी धन बिल को राज्यपाल की सिफारिश के बिना विधानसभा में पेश नहीं किया जा सकता है।
2. राज्यपाल वित्तमन्त्री द्वारा वार्षिक बजट विधान सभा में पेश करवाता है।
3. राज्यपाल आवश्यकता पड़ने पर राज्य को आकस्मिक निधि से खर्च कर लेता हैं और बाद में विधानमण्डल से उस की स्वीकृति ले लेता है।
 

घ) न्यायिक शक्तियां :-

राज्यपाल को निम्नलिखित न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त हैं।
1. राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राज्यपाल से सलाह लेता है।
2 राज्यपाल जिला न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राज्यपाल से सलाह लेता है।
3.किसी अपराधी के दण्ड को क्षमा कर सकता है या घटा सकता है।
4. कार्य की अधिकता को देखते हुए अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है।
 

स्वविवेकी अधिकार :-

1. मुख्यमन्त्री की नियुक्तिः यदि किसी राज्य विधान सभा में किस दल को या गठबंधन को बहुमत प्राप्त नहीं है तो राज्यपाल अपनी विवेक बुद्धि से मुख्यमन्त्री को नियुक्ति करता है और उसे एक निश्चित अवधि के भीतर बहुमत सिद्ध करने का समय देता है।
2. किसी राज्य में संवैधानिक संकट में विधानसभा भंग कर दी जाती है, और आपातकाल की स्थिति में राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
3. असम व सिक्किम में राज्यपाल को स्वविवेक से कार्य करने के कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं।
4. यदि किसी राज्यपाल को समीप के संघीयक्षेत्र के प्रशासक का अतिरिक्त कार्यभार भी दिया गया हो तो उसे उस क्षेत्र का प्रशासन स्वविवेक से करने का अधिकार दिया गया है। 
 

राज्यपाल की स्थिति :-

संविधान के अनुसार किसी भी राज्य की समस्त शक्तियां राज्यपाल में निहित हैं। परन्तु वस्तुस्थिति यह है कि समस्त शक्तियां मन्त्रिपरिषद के पास होती है जिस का मुखिया मुख्यमन्त्री होता है। वह उपनी इच्छा से कोई भी कार्य नहीं कर सकता। इसलिए बहुत से विद्वानों ने उसे कटपुतली की संज्ञा दी है। परन्तु राज्यपाल की स्थिति ऐसी नहीं है। वह राज्य में केन्द्र सरकार का प्रतिनिधि होता है। वह मन्त्रिपरिषद को परामर्श भी देता है। तथा उन का उत्साहवर्धन भी करता है। आपात कालीन स्थिति में वही प्रशासन का कार्य चलाता है। यदि कोई सरकार संविधान की धाराओं के अनुसार नहीं कार्य कर रही हो तो राज्यपाल इसकी सूचना राष्ट्रपति को देता है। 
पायली के शब्दों में “राज्यपाल न तो नाम मात्र का अध्यक्ष है, न ही रबड़ की मोहर, बल्कि एक ऐसा अधिकारी है जो राज्य के प्रशासन और जीवन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

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