73वां संविधान संशोधन | 73rd Constitutional Amendment

By admin

Updated on:

73वां संविधान संशोधन | 73rd Constitutional Amendment  

 भारत गावों में बसता है। गांवों का विकास ही वास्तव में भारत का विकास है। भारत एक लोकतन्त्रात्मक गण राज्य है। लोकतन्त्र को सुदृढ़ करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई है। यह व्यवस्था लोकतन्त्र की प्राथमिक पाठशाला है। गांधी जी गांव के विकास में लोगों की भगीदारी को सुनिश्चित करना चाहते थे। संविधान के 73वें संशोधन के द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया है। इस समय देश के अधिकांश प्रदेशों में पंचायती राज(PRIs) लागू है। इस की स्थापना सब से पहले राजस्थान में 2 अक्तबर 1959 को हुई। 

इस लेख में 73वें संविधान संशोधन के बारे में जो जानकारी दी गई है वो इस प्रकार से है :-

  • 73वां संविधान संशोधन क्या है?
  • 73वें संविधान संशोधन की मुख्य व्यवस्थाएँ
73वां संविधान संशोधन | 73rd Constitutional Amendment

 

 

73वां संविधान संशोधन(73rd Constitutional Amendment):-

संविधान (73 वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के द्वारा एक नया भाग IX जोड़ा गया जिसमें 16 अनुच्छेद और ग्यारहवीं अनुसूची शामिल है। 73 वें संशोधन के आधार पर ग्राम सभा की परिकल्पना की गई है और इसे पंचायती राज व्यवस्था का आधार माना गया है। तथा राज्य विधानसभाओं द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को विशेष शक्तियां प्रदान की गई हैं।

73वें संवैधानिक संशोधन की मुख्य व्यवस्थाएं :-

73वां संविधान संशोधन दिसम्बर, 1992 में लोक सभा व राज्य सभा में पारित हुआ। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर इसे संवैधानिक दर्जा दिया गया। इस की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है:

1. ग्रामीण स्तर पर लोकतान्त्रिक संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्राप्त हुई।

2. ग्राम सभा और ग्राम पंचायत को परिभाषित किया गया। ग्रामीण क्षेत्र में आने वाले सभी व्यस्क मतदाता ग्राम सभा के सदस्य हैं तथा उन के द्वारा विभिन्न वार्डों से चुने गए सदस्य ग्राम पंचायत है।

3. पंयायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद – तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था है।

4. पंचायत को वार्डों में बांटा गया। प्रत्येक वार्ड से एक सदस्य व्यस्क गुप्त मतदान द्वारा चुना जाता है तथा ये चुनाव राज्य चुनाव आयोग की निगरानी में होते हैं।

5. चुनाव क्षेत्रों में आने वाले विधान सभा व लोकसभा के सदस्य पंचायत समिति व जिला परिषद के पदेन सदस्य होते हैं और इन्हें बैठकों में वोट देने का अधिकार होता है।

6. पंचायत, पंचायत समिति प जिला परिषद के अध्यक्ष को निश्चित कार्यकाल से पहले भी पद से हटाने की व्यवस्था की गई है। पंचायत प्रधान (अध्यक्ष) के विरुद्ध यदि ग्राम सभा के 50% सदस्य प्रस्ताव पारित करें तो उसे पद से हटाया जा सकता है। पंचायत समिति और जिला परिषद में कुल सदस्यों का दो तिहाई बहुमत अध्यक्ष को पद से हटाने का प्रस्ताव पारित कर सकते हैं।

7. महिलाओं को कम से कम 1/3 सीटें आरक्षित होंगी। अनुसूचित जाति वन जन जाति के सदस्यों को भी सीटें आरक्षित की गई हैं। जैसे हिमाचल प्रदेश ने महिलाओं के लिए 50% सीटें आरक्षित की हैं।

8. पंचायती राज संस्थाओं(PRIs) की कार्य अवधि 5 वर्ष होगी।

9. चुनाव लड़ने के लिए वही योग्यताएं निर्धारित की गई है। जो विधान सभा सदस्य के लिए हैं। 21वर्ष से कम आयु का चुनाव नहीं लड़ सकता है। 

10. पंचायतों की शक्तियां और काम के क्षेत्र निर्धारित किए गए । कृषि, पशुपालन, लघु उद्योग, शिक्षा, पीने का पानी आदि 29 विषय है जो इनके कार्यक्षेत्र में आते हैं।

11. इन को कुछ कर लगाने और उसे इकट्ठा करने की शक्तियों भी दी गई।

12. पंचायतों के चुनाव विवादों को अदालतों के हस्तक्षेप से बाहर रखा गया।

 

 
 

admin

मैं इतिहास विषय की छात्रा रही हूँ I मुझे विभिन्न विषयों से जुड़ी जानकारी साझा करना बहुत पसंद हैI मैं इस मंच बतौर लेखिका कार्य कर रही हूँ I

Related Post

पंचायत समिति : शक्तियाँ एवं कार्य || What is Panchayat Samiti

जिला परिषद : कार्य एवं शक्तियाँ | What is Zila Parshad in Hindi

राज्य सचिवालय | State Secretariat in Hindi

राज्यपाल: शक्तियाँ एवं कार्य | Governor in Hindi

Leave a Comment