लोकोक्तियाँ | Proverbs in Hindi

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प्रिय, पाठकों इस पोस्ट में हमने लोकोक्तियाँ ( Proverbs in Hindi) के बारे में जानकारी प्रदान की है। हमने यहाँ लोकोक्तियों के अर्थ (Proverbs in Hindi with meaning) और उनकी उदाहरण सहित व्याख्या की है। किसी भी भाषा की समृद्धि और उसकी अभिव्यक्ति की क्षमता के विकास हेतु मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग उपयोगी होता है। भाषा में इनके प्रयोग से सजीवता और सौंदर्य आ जाता है, इसके फलस्वरूप पाठक या श्रोता शीघ्र ही प्रभावित हो जाता है। जिस भाषा में मुहावरों (Idioms) और लोकोक्तियों अधिक प्रयोग होगा, उसकी अभिव्यक्ति क्षमता उतनी ही प्रभावपूर्ण व रोचक होगी।
 

 

लोकोक्तियाँ || Proverbs in Hindi

 

लोकोक्तियाँ ( Proverbs in Hindi)

लोकोक्ति की परिभाषा (Proverb Definition) – लोकोक्ति का अर्थ है लोक में प्रचलित वह कथन अथवा उक्ति जो व्यापक लोक-अनुभव पर आधारित हो। लोकोक्ति में लौकिक- सामाजिक जीवन का अंश सत्य विद्यमान रहता है। लोकोक्ति में गागर में सागर जैसा भाव रहता है लोकोक्ति कहने के लिए उचित प्रसंग की पहचान आवश्यक है।

लोकोक्ति और मुहावरे में अंतर (Difference b/w Proverbs & Idioms)

 

मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर निम्न बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है :-
  • लोकोक्ति पूर्ण वाक्य होती हैं जबकि मुहावरा वाक्य का अंश होता है।
  • मुहावरे का प्रयोग वाक्य के अंत, आरम्भ और बीच में कहीं भी किया जा सकता हैं जबकि लोकोक्ति एक सम्पूर्ण वाक्य होता है।
  • पूर्ण इकाई होने के कारण लोकोक्ति में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है जबकि मुहावरों में वाक्य अनुसार परिवर्तन होता हैं.
  • लोकोक्ति लोक में प्रचलित उक्ति होती हैं जो भूतकाल का लोक अनुभव होती हैं जबकि मुहावरा अपने रूढ़ अर्थ के लिए प्रसिद्ध होता है।
  • पूर्ण वाक्य होने के कारण लोकोक्ति का प्रयोग स्वतंत्र और अपने आप में पूर्ण इकाई के रूप में होता है जबकि मुहावरा किसी वाक्य का अंश बनकर आता है।
  • लोकोक्ति तथा मुहावरे में उपयोगिता की दृष्टी से भी पर्याप्त अन्तर होता है। लोकोक्ति किसी बात का समर्थन, विरोध अथवा खंडन करने के लिए प्रयोग में ली जाती है।

 

 

लोकोक्तियों के अर्थ और उदाहरण सहित व्याख्या

1. अन्त भले का भला – (अच्छे काम का फल भी अच्छा होता है) – अंकुर ने तुम को कितनी हानि पहुंचाई, लेकिन तुमने उसे लाभ ही पहुंचाया । तुम तो यही सोचते हो अन्त भले का भला।

 

 


2. अन्धी पीसे कुत्ता खाए – (किसी के कमाये हुए धन को कोई दूसरा उपयोग करे) -पिता ने परिश्रम करके धन कमाया है, लेकिन उसकी सन्तान पैसे बर्बाद करने में लगी है। इसे कहते हैं-अन्धी पीसे कुत्ता खाए ।

 

 


3. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – (अकेला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सकता) – भले ही वह सच्चा समाज सेवी और ईमानदार भी है, लेकिन वह समाज को बदल नहीं सकता। सच कहा है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता ।

 

 


4. अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग – (मनमानी करना) – इस घर का तो भगवान् ही मालिक है । सभी मनमानी करते हैं । इसे कहते हैं- अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग ।

 

 


5. अकेली मछली सारा तालाब गन्दा कर देती है – (बुरा आदमी सारे वातावरण को दूषित कर देता है) – मैंने तुम को पहले ही कहा था कि उस बदमाश को सभा में मत बुलाओ । उसने आकर लड़ाई-झगड़ा कर दिया है । तुम तो जानते हो कि अकेली मछली सारा तालाब गन्दा कर देती है।

 

 


6. अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत – (परिश्रम करने के कारण असफल होने पर पश्चात्ताप करना) – पहले तो सारा वर्ष खेल-कूद में व्यतीत कर दिया। अब परीक्षा में फेल होने पर पछता रहे हो, अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत ।

 

 


7. आगे कुआँ पीछे खाई – (सभी ओर से मुसीबत का आना) – आजकल राधा बहुत परेशान में है। ससुराल वाले उसे दहेज के कारण परेशान कर रहे हैं और मायके में भाभी उसे टिकने नहीं देती । उस की तो स्थिति है- आगे कुआँ पीछे खाई ।

 

 


8. आम के आम गुठलियों के दाम – (दोहरा लाभ)- हमारा पड़ोसी हरिद्वार जाकर गाय भी बेच आया और गंगा में स्नान भी कर आया । इसे कहते हैं- आम के आम गुठलियों के दाम।

 

 


9. अधजल गगरी छलकत जाए – (ओछा आदमी दिखावा अधिक करता है)- सीता ने थोड़ा संगीत क्या सीख लिया ? अब अपने को बड़ी संगीत-शिक्षिका समझने लगी है। इसे कहते हैं – अधजल गगरी छलकत जाय ।

 

 


10. अन्धा क्या चाहे दो आँखें – (मनचाही वस्तु बिना प्रयत्न के मिलना) – भिखारी भूख से व्याकुल था। बुढ़िया ने उसे पूछा-भोजन करोगे ? भिखारी बोला अन्धा क्या चाहे दो आँखें।

 

 


11. अन्धेर नगरी चौपट राजा – (जहाँ कोई व्यवस्था अथवा न्याय न हो) – जब से नया मुख्यमन्त्री बना है तभी से प्रदेश में अन्धेर नगरी चौपट राजा वाली बात हो रही है ।

 

 


12. अन्धों में काना राजा – (मूर्खों में अल्पज्ञ का मान होना) – हमारे गाँव के सरपंच के लड़के ने बी.ए. पास क्या कर ली, वही अब गाँव के अन्धों में काना राजा बना हुआ है।

 

 


13. आप मरे जग परले – (प्रलय) – आप मर गए तो चिन्ता किसकी। कृष्ण ने बीमा के ऐजन्ट से कहा-मेरे भरने पर तो बीमा के पैसे मिलेंगे। मुझे इस से क्या लाभ है ? कहा भी है-आप मरे जग परलै ।

 

 


14. आँखों के अन्धे नाम नयन सुख – (नाम अच्छा लेकिन काम बुरा) – सत्यपाल नाम है और बात-बात पर झूठ बोलता है। इसे कहते हैं-आँखों से अन्धे नाम नयन सुख ।

 

 


15. उलटा चारे कोतवाल को डाँटे – (अपना दोष स्वीकार न करके पूछने वाले को दोषी बताना) – एक तो तुमने मेरा पैन चुरा लिया, उल्टा मुझे ही आँखें दिखा रहे हो । इसे कहते हैं- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे ।

 

 


16. ऊँट के मुहँ में जीरा – (आवश्यकता से कम चीज देना) – पहलवान को पाव भर दूध देना तो ऊँट के मुँह में जीरा देने के समान है ।

 

 


17. ऊँची दुकान फीका पकवान – (आडम्बर अधिक लेकिन सार कम) – दुकान पर बोर्ड तो लगा है विमल सूटिंग का, लेकिन मिलता नहीं कमीज़ का भी कपड़ा । इसे कहते हैं -ऊँची दुकान फीका पकवान ।

 

 


18. एक अनार सौ बीमार – (एक वस्तु के अनेक ग्राहक) – हमारे स्कूल में एक अध्यापक की नौकरी खाली पड़ी है, लेकिन उम्मीदवार सौ के लगभग हैं । यह तो वही हुआ कि एक अनार सौ बीमार ।

 

 


19. एक पंथ दो काज – (एक काम का दोहरा लाभ) – मुझे सरकारी काम से दिल्ली जाना है। वहाँ मैं अपनी ससुराल भी हो आऊँगा । इससे एक पंथ दो काज हो जाएँगे।

 

 


20. एक ही थाली के चट्टे-बट्टे – (सभी एक जैसे) – आज सभी कार्यालयों में रिश्वत चलती है। किसी को भी रिश्वत देकर काम निकलवा सकते हो ।सभी कर्मचारी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।

 

 


21. एक करेला दूसरा नीम चढ़ा – (एक बुराई के साथ दूसरी बुराई होना) – रामू पहले तो शराब पीता था। अब जुआ भी खेलने लग गया है। उस पर तो यही लोकोक्ति चरितार्थ होती कि एक करेला दूसरा नीम चढ़ा ।

 

 


22. का वर्षा, जब कृषि सुखाने – (अवसर निकल जाने पर मदद से कोई लाभ नहीं) – अकसर पुलिस जुर्म हो जाने के बाद दुर्घटना स्थल पर पहुँचती है। कहा तो है-का वर्षा, जब कृषि सुखाने ।

 

 


23. कंगाली में आटा गीला – (संकट के समय और भी विपत्तियाँ आना) – एक तो राजेश वैसे ऋण के बोझ तले दबा हुआ था, ऊपर से उसे व्यापार में घाटा और पड़ गया। यह तो वही बात हुई कंगाली में आटा गीला ।

 

 


24. घर का भेदी लंका ढाय – (आपस की फूट से हानि पहुँचती है) – राकेश के नौकर सारे घर की बातों का ढिंढोरा शहर में पीटते फिरते हैं, जिससे लोगों को उनकी सारी कमजोरियां पता लग गई हैं। सच ही कहा है- घर का भेदी लंका ढाए ।

 

 


25. चोर की दाढ़ी में तिनका – (अपराधी को अपने अपराध के प्रकट होने की आशंका लगी रहती है) – जैसे ही थानेदार ने कहा कि चोर को पहचान लिया गया है, तो एक आदमी बोल पड़ा-“मैंने चोरी नहीं की।” इसी को तो कहते हैं-चोर की दाढ़ी में तिनका ।

 

 


26. चिराग तले अन्धेरा – (अपनी बुराई दिखाई न देना) – वह खुद तो सबको पढने-लिखने के उपदेश देता रहता है और खुद उसकी औलाद आवारा है । वही बात है- चिराग तले अन्धेरा

 

 


27. छोटा मुँह बड़ी बात –(अपने सामर्थ्य से बड़ा काम) – ख्वाब तो सुरेश बहुत ऊँचे लेता है, पर उसके घर में खाने को रोटी तक नहीं है। यह तो वही बात है- छोटा मुँह बड़ी बात।

 

 


28. जल में रहकर मगर से वैर – (जिसके अधीन रहकर उसी से वैर किया जाए) – सुरेश एक क्लर्क होकर अपने मैनेजर के विरुद्ध बातें करता है । यह तो वही बात हुई – जल में रहकर मगर से वैर।

 

 


29. जिसकी लाठी उसकी भैंस – (बलवान का सर्वत्र बोलबाला होता है)- आजकल राजनीति में बलवान और निडर व्यक्ति ही कामयाब हैं । वही बात है- जिसकी लाठी उसकी भैंस ।

 

 


30. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं – (डींग मारने वाले काम नहीं कर सकते) – भारत कभी पाकिस्तान की धमकियों से डरने वाला नहीं हैं, क्योंकि हमें मालूम है जो गरजते हैं वे बरसते नहीं।

 

 


31. झूठ के पाँव नहीं होते – (व्यक्ति अपनी बात पर स्थिर नहीं रहता)- जब राजेश को लगा कि उसकी धमकियों से कोई नहीं डरा तो उसने नरम रुख अपना लिया। इसी को तो कहते हैं- झूठ के पाँव नहीं होते ।

 

 


32. थोथा चना बाजे घना – (जहाँ आडम्बर हो, वहाँ सार कम होता है) – एक क्लर्क होकर भी तुम अफसरों जैसी बाते करते हो। किसी ने सही ही कहा है – थोथा चना बाजे घना।

 

 


33. दूर के ढोल सुहावने – (दूर से वस्तु के गुण जो दिखाई देते हैं, वे संभावित नहीं होते) – हमने तो इस संत का बड़ा नाम सुना था, पर वास्तव में तो ढोंगी निकला। सच ही कहा है – दूर के ढोल सुहावने होते हैं ।

 

 


34. दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है – (एक बार धोखा खाकर व्यक्ति आसानी से किसी पर भी विश्वास नहीं करता -) जब एक बार उसे व्यापार में लाखों का घाटा हुआ तो अब वह व्यापार में पैसे को सोच-समझकर लगाता है । वही बात है- दूध का जला फूंक कर पीता है ।

 

 


35. धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का – (दु-तरफे व्यक्ति को कहीं कोई स्थान नहीं मिलता)- घर से लड़कर राजू अपने दोस्त के घर चला गया पर दोस्त ने भी उसे घर में नहीं घुसने दिया। उसकी तो वही हालत हुई- धोबी का कुत्ता न घर का ना घाट का ।

 

 


36. नो नकद न तेरह उधार – (उधार के अधिक लाभ से नकद का थोड़ा लाभ ही अच्छा)- बनिये ने उधार देने से साफ इन्कार कर दिया। उसने कहा हमारा नियम है-नौ नकद न तेरह उधार।

 

 


37. नाच ना जाने आँगन टेढ़ा – (कार्य का ज्ञान न होने पर बहाने बनाना) – गाने को कहा गया तो वह बहाने बनाने लगा कि गला खराब है । अरे ! यह तो वही बात हुई -नाच न जाने आँगन टेढ़ा।

 

 


38. पाँचों उँगलियाँ घी में होना –(हर तरफ से मौज होना) – आजकल तो उसे व्यापारमें भी खूब फायदा हो रहा है और दहेज में भी काफी नकद मिला है। उसकी तो पांचों उँगलियाँ घी में है।

 

 


39. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी – (न कारण होगा, न कार्य होगा) – कब्ज काफी बीमारियों का कारण है । इसलिए कब्ज का निवारण करना चाहिए । इसीलिए कहते हैं- न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।

 

 


40-बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद – (अनपढ़ अथवा मूर्ख व्यक्ति क्या जाने विद्या की बातें)- अरे, इस अनपढ़ से क्या हिसाब माँग रहे हो । बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद।

 

 


41. बगल में छुरी, मुहँ में राम-राम – (दिखाने में मित्रता भीतर से शत्रुता रखना) – कपटी मित्रों से बचकर रहना चाहिए। उनके बगल में छुरी और मुहँ पर राम-राम होता है।

 

 


42. भागते चोर की लंगोटी ही सही – (अधिक न मिलने पर कम मिलना ही अच्छा) – पिता जी ने कहा-बेटे मैं तुम्हें सौ रुपये तो नहीं, केवल पचास ही दे सकता हूँ । पुत्र ने कहा – भागते चोर की लंगोटी ही सही ।

 

 


43. मान न मान में तेरा महमान – (जबरदस्ती गले पड़ना)- मोहन ने बिना जान-पहचान के मेरे चाचा जी के यहाँ डेरा लगा लिया है। उस पर तो मान न मान मैं तेरा मेहमान वाली कहावत लागू होती है।

 

 


44. मन के हारे हार है मन के जीते जीत – (मन की स्थिति पर व्यक्ति की सफलता-असफल निर्भर करती है) – अरे भाई ! फेल हो गया तो क्या हुआ । साहस से काम लो। अब की बार अधिक परिश्रम करो, क्योंकि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत । इस बार तुम्हें अवश्य सफलता मिलेगी।

 

 


45. रस्सी जल गई पर ऐंठन न गई – (नष्ट होकर भी अपनी अकड़ न छोड़ना) – बी.ए. में दूसरी बार फेल होने पर नरेश डींग हाँकने से बाज नहीं आता। इसे कहते हैं – रस्सी जल गई पर ऐंठन न गई।

 

 


46. साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे – (काम भी बन जाए और हानि भी न हो) – भई ! अपने मित्र मोहन को उस की दुष्टता का ऐसा दण्ड दो कि वह याद रखे और अन्य मित्रों को पता भी न चले । कुछ ऐसा करो कि साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे ।

 

 


47. साँच को आँच नहीं – (सच्चे व्यक्ति को डरने की आवश्यकता नहीं) – प्रह्लाद को उसके नास्तिक पिता ने तरह-तरह की यातनाएं दी, किन्तु उस का बाल भी बांका न हुआ। सच कहते हैं कि साँच को आँच नहीं ।

 

 


48. हाथ कंगन को आरसी क्या – (प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती) – मित्र! तुम स्वयं चलकर देख लो। तुम्हारा बेटा जुआ खेल रहा है। हाथ कंगन को आरसी क्या ?

 

 


39. होनहार बिरवान के होत चिकने पात – (होनहार व्यक्तियों का बचपन में ही पता चल जाता है) – लक्ष्मीबाई बचपन में युद्ध लड़ने का खेल खेलती थी। बड़ा होकर उसने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए। सच कहा है कि होनहार बिरवान के होत चिकने पात ।

 

 


50. हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और – (कहना कुछ और करना कुछ) – तुम उस बगुला भगत मंत्री पर विश्वास न करो। तुमने सुन हा रखा होगा कि हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और ।

 

 


51. सहज पके सो मोटा होय- (धीरे-धीरे किया जाने वाला काम दृढ़ और लाभदायक होता है) – अरे मित्र ! तुम परीक्षा की तैयारी शुरु करो। पढ़ते-पढ़ते ही पाठ्यक्रम तैयार होगा। कहा भी है-सहज पके सो मीटा होय ।

 

 


52. सौ सुनार की एक लुहार की – (कमज़ोर चोटों के मुकाबले में एक सुदृढ़ चोट करारी होती है) – कृष्ण मोहन को बात-बात पर थप्पड़ मार देता था। मोहन ने कृष्ण को एक दिन ऐसा ज़ोर से पटका कि उसकी टाँग ही टूट गई । सच कहा है कि- सौ सुनार लुहार की।

 

 


53. हंसा थे सो उड़ गए अब कागा भये दिवान – (अच्छे और विद्वान लोगों के चले जाने के बाद दुष्ट और मूर्खों के हाथ में बागडोर होना) – अब स्कूल में जाने से क्या लाभ, क्योंकि विद्वान शिक्षक और प्रिंसीपल तो स्कूल छोड़कर चले गए हैं। अब तो वहाँ पर मूर्खों का अधिपात्य बना हुआ है। सच कहा है -हंसा थे सो उड़ गए अब कागा भये दिवान ।

 

 


54. सावन हरे न भादो सूखे – (हमेशा एक अवस्था में रहना) – जब मेरे पिता जी गरीब थे तब भी वे धन की परवाह नहीं करते थे। अब हमारे आने से दुकान का काम खूब चल रहा है। पिताजी को अब भी पैसे की कोई चिंता नहीं। उन पर तो यह लोकोक्ति होती है-सावन हरे न भादो सूखे ।

 

 


55. यह मुँह और मसूर की दाल – (योग्यता से बड़ी वस्तु पाने की इच्छा करना) – अनिल से बी. ए. की परीक्षा तो पास नहीं हुई और चाहता है बैंक का मैनेजर बनना । उस पर तो यह मुंह और मसूर की दाल वालो लोकोक्ति लागू होती है।

 

 


56. मन चंगा तो कटौती में गंगा – (यदि मन अच्छा हो तो पूजा-पाट सब व्यर्थ है) – प्रतिदिन सवेरे-सवेरे मन्दिर जाने की आवश्कता नहीं है। मनुष्य अपने आचरण को ही शुद्ध कर ले तो पर्याप्त है। सच कहा है- मन चंगा तो कठौती में गंगा ।

 

 


57. पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती – (सब एक जैसे नहीं होते) – मोहन का एक बेटा मंत्री बन गया है, लेकिन दूसरा बेटा बैंक में चपड़ासी लगा हुआ है। कहते हैं कि पाँचों उगंलियाँ बराबर नहीं होती।

 

 


58. पर उपदेश कुशल बहुतेरे – (दूसरों को उपदेश देना परन्तु स्वयं गुणों से रहित होना) – आजकल के नेता भ्रष्टाचार को समाप्त करने के उपदेश देते हैं, लेकिन स्वयं गलत तरीकों से धन का संग्रह करने में लगे हुए हैं। सच कहा है पर उपदेश कुशल बहुतेरे ।

 

 


59. बिन माँगे मोती सिले, माँगे मिले न भीख – (माँगना अच्छा नहीं) – ईश्वर पर विश्वास रखकर काम करते रहो। किसी के आगे हाथ मत फैलाओ । याद रखो। बिन माँगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख।

 

 


60. बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते होय – (बुरे काम करने से सदा हानि ही होती है) – जब वर्ष भर पुस्तक उठाकर नहीं देखी तो परीक्षा में पास कैसे हो सकते थे। अब फेल होकर तुम्हे पता लग गया होगा कि बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय । परिश्रम करने से व्यक्ति पास हो सकता है।

 

 


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