कारक: परिभाषा, भेद और उदाहरण | Case Meaning in Hindi , Types, Definition, Examples

|
Facebook

 कारक की परिभाषा, कारक के भेद और उदाहरण | Meaning of Case in Hindi, Kaarak definition, Types of Case, examples – 

प्रिय, पाठकों इस लेख में हम  इस लेख में हम कारक(Case in Hindi) की परिभाषा, भेदों को उदहारण सहित जानेंगे। कारक किसे कहते हैं? कारक के कितने भेद हैं? इन प्रश्नों की सम्पूर्ण जानकारी बहुत ही सरल भाषा में इस लेख में दी गई है –

इस लेख में हम कारक(Karak in Hindi) के बारे में जो जानकारी दी है वह इस प्रकार से है :-

  • कारक किसे कहते हैं (Case in Hindi)
  • कारक चिन्ह (Case Endings in Hindi)
  • कारक के भेद (Types of Case)

 

कारक: परिभाषा, भेद और उदाहरण | Case Meaning in Hindi , Types, Definition, Examples

 

कारक किसे कहते हैं (Case in Hindi) :-

कारक की परिभाषा :- कारक शब्द संस्कृत की कृ धातु में अक प्रत्यय लगने से बना है। इसका अर्थ है- क्रिया के साथ सम्बन्ध स्थापित करने वाला । संज्ञा या सर्वनाम के जिस के द्वारा उसका सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों, विशेषकर क्रिया के साथ जाना जाता है, उसे कारक कहते हैं । 

जैसे :- राम ने रावण को बाण से मारा । इस वाक्य में ‘राम ने’ ‘रावण को’ और ‘बाण से’ ये तीनों शब्द संज्ञाओं के रूपान्तर हैं। इनका सम्बन्ध ‘मारा’ क्रिया के साथ है। अतः ये तीनों कारक हैं।

षष्ठी या सम्बन्ध को कारक नहीं माना जाता है, क्योंकि इसका सम्बन्ध संज्ञा और क्रिया के साथ न होकर दो संज्ञा-शब्दों में होता है।

कारक चिन्ह (Case Endings in Hindi) :- 

जिन चिह्नों के लगने से संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ सम्बन्ध प्रकट होता है, उन्हें कारक-चिह्न या विभक्ति कहते हैं । हिन्दी में कुल कारक आठ हैं। इनके नाम और चिहून इस प्रकार से हैं :

विभक्ति कारक चिह्न या विभक्तियां
प्रथमा कर्ता ने (से) या कोई भी चिन्ह नहीं लगता
द्वितीया कर्म को, (के प्रति)
तृतिया करण से, (के द्वारा)
चतुर्थी सम्प्रदान को, के लिए, वास्ते, अर्थ
पंचमी अपादान से, (अलग होने के अर्थ में)
षष्ठी सम्बन्ध का, की, के ; रा, रे, री
सप्तमी अधिकरण में, पर
सम्बोधन सम्बोधन इसकी कोई विभक्ति नहीं (हे, अरे, आदि अव्यय सम्बोधन का बोध कराने वाले हैं)


1. कर्ता (Nominative Case in Hindi) :- 

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो उसे कर्ता कारक कहते हैं । 

जैसे :- राम ने रावण को मारा। यहाँ ‘मारना’ क्रिया का कर्ता राम है, अतः राम कर्ता है । कर्ता कारक कभी-कभी विभक्ति-चिह्न रहित भी होता है। 

जैसे:- राम पढ़ता है।

2. कर्म (Objective Case in Hindi) :- 

जिस व्यक्ति या वस्तु पर क्रिया का फल पड़े उस का बोध कराने वाले संज्ञा या सर्वनाम के रूप को कर्म कारक कहते हैं।

 जैसे :- कृष्ण ने कंस को मारा। यहाँ कर्ता ‘कृष्ण’ के क्रिया-व्यापार ‘मारने’ का फल कंस पर पड़ता है। अतः ‘कंस’ कर्म है। कभी-कभी कर्म कारक का चिह्न ‘को’ नहीं भी लगता।

जैसे :- राम पुस्तक पढ़ता है।

 

3. करण (Instrumental Case in Hindi) :-

जिस साधन के द्वारा क्रिया की जाती है, उसे सूचित करने वाला रूप करण कारक कहलाता है। 

जैसे :- राम ने बाण से बाली को मारा। यहाँ कर्ता राम ने ‘बाण’ द्वारा ही मारने का काम किया है । अतः ‘बाण’ करण कारक है।

4. सम्प्रदान (Dative Case in Hindi) :-

जिसके लिए क्रिया की जाती है उसको बताने वाले संज्ञा या सर्वनाम के रूप को सम्प्रदाय कारक कहते हैं। 

जैसे :- राजा ने गरीबों को धन दिया ।
यहाँ देना’ क्रिया गरीबों के लिए प्रयुक्त की गई है, अतः ‘गरीबों को’ सम्प्रदान कारक है ।

5. अपादान (Ablative Case in Hindi) :-

 संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिससे किसी अन्य वस्तु के अलग होने की क्रिया पाई जाती है, अपादान कारक कहलाता है। 

जैसे :- वृक्ष से पत्ता गिरता है।
यहां संज्ञा के रूप ‘वृक्ष’ से दूसरी वस्तु पत्ता का अलग होना पाया गया है । अतः ‘वृक्ष से’ अपादान कारक है।

6. सम्बन्ध (Possessive Case in Hindi) :-

संज्ञा के जिस रूप से दूसरी वस्तु का सम्बन्ध प्रकट होता है, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं। 

जैसे :- राजा का आदमी। यहाँ दूसरी वस्तु आदमी का राजा से सम्बन्ध प्रकट होता है; इसलिए ‘राजा का’ सम्बन्ध कारक है ।

7. अधिकरण (Locative Case in Hindi) :- 

संज्ञा का वह रूप जिससे क्रिया के करने या होने के आधार का बोध हो, अधिकरण कारक कहलाता है। 

जैसे :- ऋषि आसन पर बैठता है । यहाँ ‘आसन पर’ अधिकरण कारक कहलाएगा ।

8. सम्बोधन (Vocative Case in Hindi) :- 

संज्ञा का वह रूप जिससे किसी को बुलाना, पुकारना सूचित होता है, सम्बोधन कारक कहलाता है।
 जैसे :- हे राम ! इधर आओ ।
यहाँ संज्ञा का रूप ‘हे राम’ बुलाने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है; अतः यह सम्बोधन है । सम्बोधन के पीछे !’ चिह्न लगता है।
 

 

कारकों की रूप-रचना के नियम :-

(1) अकारान्त पुल्लिग संज्ञा-शब्दों के एकवचन में अन्तिम ‘आ’ को कारक चिह्न के साथ प्रयोग के समय ‘ए’ कर दिया जाता है ।
जैसे :- लड़के ने । ‘सम्बोधन’ के समय भी यही रूप प्रयुक्त होता है ; जैसे :- हे लड़के ! इधर आओ । मामा, राजा, देवता जैसे शब्दों में कोई परिवर्तन नहीं होता ।
(2) अकारान्त तथा आकारान्त पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के ‘अ’ का बहुवचन में ‘ओं’ और सम्बोधन में ‘ओ’ हो जाता है।
जैसे :- बालक से बालकों, लड़का से लड़कों, रात से रातों । सम्बोधन में बालको, लड़को, रातो, राजाओ आदि ।
(3) इकारान्त तथा ईकारान्त पुल्लिग और स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त में ‘यो’ लगता है और दीर्घ ‘ई’ हस्व ‘इ’ हो जाती है तथा सम्बोधन में ‘यो’ लगता है।
 जैसे :- पति से पतियों, धोबियों, बुद्धियों तथा देवियों रूप बनेंगे।
(4) उ, ऊ, ए, ऐ और औ अन्त वाले पुल्लिग और स्त्रीलिंग शब्दों में ‘ओ’ लगता है और सम्बोधन में ‘ओ’ होता है तथा दीर्घ ‘ऊ’ ह्रस्व हो जाता है ।
  जैसे :- गुरु से गुरुओं, डाकू से डाकुओं, दूबे से दुबेओं, माधो से माधाओं जौ से जौओं और सम्बोधन में गुरुओ और डाकुओ आदि रूप बनते है।
(5) हिन्दी भाषा तत्सम शब्दों का सम्बोधन भी संस्कृत के सम्बोधन के समान ही होता है।
जैसे:- लता से लते, कन्या से कन्ये आदि ।

Leave a Comment