प्रिय, पाठकों आज की इस पोस्ट में हमने चौपाई छन्द के बारे में जानकारी प्रदान की है। आशा करते हैं कि आपको चौपाई की परिभाषा तथा चौपाई के उदाहरण सहित यह जानकारी पसंद आएगी।
चौपाई की परिभाषा
चौपाई एक मात्रिक समछन्द है। इसके प्रत्येक चरण में सोलह-सोलह मात्राएँ होती है।
कहा भी गया है :-
कल सोलह जहँ सदा सुहावै । जाके अन्त जता नहि भावे ।
सम-सम विषय-विषय सुखाई। कविगण ताहि कह चौपाई ।।
चौपाई के चरण के अन्त में जगण तथा तगण नही आते । बल्कि सम कल के बाद समकल तथा विषम कल के बाद विषम कल आते हैं।
समकल का अर्थ है – दो या चार मात्राओं का समूह और
विषमकाल का अर्थ है –तीन मात्राओं का समूह ।
जैसे:- :
। । । । ऽ । । । । ऽ ऽ ऽ
ऽ ऽ ऽ । ऽ । । ऽ ऽ
खोपा छोरि केस मुकुलाई । = 16
। । । । ऽ । । । । । । ऽ ऽ
ससि मुख अंग मलय गिरिबासा । = 16
ऽ । । ऽ । ऽ । । । ऽ ऽ
नागिन झांपि लीन्ह चहुँ पासा । = 16
समन्वय – ऊपर के पद्य के प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ हैं। चरण के अन्त में जगण अथवा तगण भी नही है। यहाँ समकल के बाद समकल है तथा विषम कल के बाद विषम कल भी है। अतः यह चौपाई छन्द का सुन्दर उदाहरण है।
एक और उदाहरण से समझिए :-
बन्दहुँ गुरु-पद पदुम परागा । (16 मात्राएं)
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा ।। (16 मात्राएं)